खेम साहु@भुपदेवपुर। प्रत्येक नागरिक, जिसकी समस्त स्रोतों से आय प्रति वर्ष एक लाख रुपए हो, नि:शुल्क विधिक सेवा का पात्र है। संबंधित विधिक सेवा समिति के अध्यक्ष किसी अन्य उपयुक्त मामले में भी मुफ्त विधिक सहायता प्रदान कर सकते हैं…
महिला सशक्तिकरण दिवस,अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर आज दिनांक 06/03/2023 को थाना भूपदेवपुर के ग्राम लोढ़ाझर में आयोजित विधिक सहायता शिविर में माननीय jmfc महोदय खरसिया द्वय सुश्री मंजूषा टोप्पो, श्रीमती दीप्ति बरुआ मैडम और रायगढ़ से आई अधिवक्ता भट्ट, गोस्वामी मैडम द्वारा ग्रामीणों, महिलाओं, बच्चो को विधि संबंधी,महिला संबंधी व बाल अपराध के बारे मे तथा कानूनी सहायता किस प्रकार प्राप्त करें के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई ,
थाना प्रभारी भूपदेवपुर गंगा प्रसाद बंजारे द्वारा जनचेतना कार्यक्रम में सायबर अपराध जैसे बैंक फ्राड, , ऑनलाईन ठगी, नशा मुक्ति, यातायात के नियम के बारे मे विस्तृत जानकारी देते हुए और रंगों का त्योहार होली पर्व को जिले में शांतिपूर्वक माहौल में मनाने के संबंध में कलेक्टर तारन प्रकाश सिन्हा,वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सदानंद कुमार के निर्देशानुसार एसडीओपी निमिषा पाण्डेय प्रभारी तहसीलदार रविवार को पी डब्लू डी रेस्ट हाउस खरसिया में शांति समिति की बैठक आयोजित की गई।
होली त्योहार शांति पूर्वक मनाने की अपील तथा हुडदंग करने वाले लोगों,असामाजिक तत्वों पर कड़ी कार्यवाही करने बताया गया है।
विधिक साक्षरता से आशय जनता को कानून से संबंधित सामान्य बातों से परिचित कराकर उनका सशक्तिकरण करना है। कानूनी जागरूकता कानूनी संस्कृति की चेतना को बढ़ावा देने व कानूनों के निर्माण के शासन में भागीदारी को बढ़ावा देने में मदद करती है। सार्वजनिक कानूनी शिक्षा, जिसे कभी कभी नागरिक शिक्षा कहा जाता है, में सार्वजनिक जागरूकता और कानून और न्याय प्रणाली से संबंधित कौशल बनाने के उद्देश्य से कई गतिविधियां शामिल हैं। यह शब्द उन गतिविधियों से संबंधित अभ्यास के क्षेत्रों और एक सामाजिक अभ्यास और अध्ययन के क्षेत्रों और एक सामाजिक अभ्यास और व्यावसायिक आंदोलन को भी संदर्भित करता है जो कानून के बारे में लोगों को शिक्षित करने के लिए अधिक सामाजिक प्रतिबद्धता की वकालत करता है। विधिक जागरूकता से विधिक संस्कृति को बढ़ावा मिलता है, कानूनों के निर्माण में लोगों की भागीदारी बढ़ती है और कानून के शासन की स्थापना की दिशा में प्रगति होती है।
‘निरंतर दृष्टिकोण’ कानूनी साक्षरता को एक निरंतरता के साथ फैली क्षमता, एक छोर पर वकीलों और न्यायाधीशों के साथ और दूसरे पर अपेक्षाकृत रहना, पहले विधिक रूप से साक्षर होने का अर्थ था कि कानूनी दस्तावेजों, विचारों, निर्णयों, कानूनों आदि को लिख-पढ़ पाने की क्षमता। किंतु अब इसका अर्थ कानून से संबंधित इतनी क्षमता से है जो किसी कानूनी समाज में अर्थपूर्ण जीवन जीने के लिए जरूरी हो। वास्तव में वादकारी को योग्य न्यायाधीशों, सुसज्जित न्याय कक्षों, विद्वान अधिवक्ता समुदाय एवं न्यायिक मीमांसा से कोई सरोकार नहीं होता है, जो शीघ्र से शीघ्र इस बीमारी से निदान पाना चाहता है। विधिक कहावत यह है कि कानून के प्रति अनभिज्ञता कोई बचाव नहीं है। यह अवधारणा स्थापित हो जाती है कि प्रत्येक संबंधित जन को इस कानून की जानकारी है, जबकि व्यावहारिक पहलू भिन्न है। उदाहरण के लिए सडक़ों पर अज्ञात वाहन से दुर्घटना हो जाना आम बात हो गई है । ऐसी घटना को मोटर वाहन अधिनियम के अंतर्गत ‘हिट एण्ड रन’ के रूप में प्राविधानित किया गया है और पीडि़त पक्षकार को अनुतोष धनराशि उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है।
परन्तु इस प्रावधान का लाभ दुर्घटना से प्रभावित व्यक्ति नहीं उठा पा रहा है तथा दोनों पार्टियां कोर्ट के चक्कर में न फंसने के चलते बात को टालना ही ठीक समझती हैं। अत: जनमानस में प्रचार प्रसार के द्वारा अद्यतन विधि विधानों से आम जनता को अवगत कराया जाना विधिक साक्षरता कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य है। विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 की व्यवस्था के अनुसार विधिक सेवा कार्यक्रम के अंतर्गत न केवल कमजोर व्यक्तियों को विधिक सेवा उपलब्ध कराया जाना शामिल है, बल्कि भारत के सुदूर एवं ग्रामीण अंचलों में कैम्प लगाकर आम जनता को विभिन्न विधिक प्रावधानों से अवगत कराते हुए उन्हें विधिक रूप से साक्षर बनाना भी विधिक सेवा कार्यक्रम का अभिन्न अंग है, जिसे विधिक साक्षरता के रूप मे जाना जाता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39-ए में सभी के लिए न्याय सुनिश्चित किया गया है और गरीबों तथा समाज के कमजोर वर्गों के लिए निशुल्क कानूनी सहायता की व्यवस्था की गई है। संविधान के अनुच्छेद 14 और 22 (1) के तहत राज्य का यह उत्तरदायित्व है कि वह सबके लिए समान अवसर सुनिश्चित करे। राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) देश भर में कानूनी सहायता कार्यक्रम और स्कीमें लागू करने के लिए राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण पर दिशानिर्देश जारी करता है। जिसमें कि बाल विवाह रोकथाम, मध्यस्थता कार्यक्रम, राष्ट्रीय लोक अदालत, विधिक सहायता एवं अन्य विधिक सेवा योजनाओं की जानकारी देकर लोगों को लाभान्वित किया जाए। प्रत्येक बालक जिसे कोई मुकदमा दायर या प्रतिरक्षा करना हो, वह नि:शुल्क विधिक सेवाओं का हकदार है।
यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम 2005 के अंतर्गत विधिक सेवा प्राधिकरण बच्चे के परिवार अथवा अभिभावक को अधिवक्ता प्रदान करेंगे यदि वे विधिक सलाहकार वहन करने में असमर्थ हैं। एक पैरा लीगल वॉलंटियर का काम गांव-गांव जाकर न्याय के लिए तरस रहे ऐसे ही लोगों को त्वरित न्याय प्रदान करने के लिए उन्हें सही रास्ता बताना है। इसके लिए एक पैरा लीगल वॉलंटियर जनता के छोटे-छोटे झगड़ों में मध्यस्थता की भूमिका कर समझौता करवाने के लिए भी प्रतिबद्ध होते हैं। इस तरह लीगल एंड क्लीनिक जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा स्थानीय ग्रामीण जनों को नि:शुल्क एवं मूलभूत विधिक सेवा उपलब्ध कराने हेतु प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की तर्ज पर स्थापित प्राथमिक विधिक सेवा केंद्र। ये केंद्र स्थानीय व्यक्तियों के विधिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए कार्य करते हैं। सरकार ने विधिक जागरूकता के लिए निम्नलिखित उपायों का प्रावधान किया है : न्यायिक अधिकारीगण व विधिक जागरूकता टीम द्वारा विद्यालयों, महाविद्यालयों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर विधिक साक्षरता शिविरों का आयोजन किया जाता रहता है। दूरदर्शन, आकाशवाणी तथा अन्य सर्वजनिक संचार माध्यमों द्वारा ‘कानून की बात’ साप्ताहिक कार्यक्रम का प्रसारण नियमित रूप से किया जाता है जिसमें विधि-कानून के बारे में उचित जानकारियां दी जाती हैं।
सचल वाहनों के द्वारा गांव व ग्रामीण क्षेत्रों में सचल लोक अदालत लगाई जाती हैं तथा विधिक जागरूकता अभियान भी चलाया जाता है। विभिन्न विधिक सेवा प्राधिकरणों द्वारा विधिक कानूनों से युक्त पत्रों व लघु-पत्रिकाओं का वितरण किया जाता है, ताकि लोगों में विधिक जागरूकता आ सके। प्रत्येक नागरिक, जिसकी समस्त स्रोतों से आय प्रति वर्ष एक लाख रुपए हो, निशुल्क विधिक सेवा के पात्र हैं। संबंधित विधिक सेवा समिति के अध्यक्ष, प्राधिकरण के सह अध्यक्ष के अनुमोदन से किसी अन्य उपयुक्त मामले में भी मुफ्त विधिक सहायता प्रदान कर सकते हैं। जन उपयोगी सेवाओं के लिए स्थापित स्थायी लोक अदालतों को जन अपराधों के लिए क्षेत्राधिकार नहीं होता है, जिसमें मामले सुलह करने योग्य नहीं रहते तथा उन वादों में भी क्षेत्राधिकार नहीं होता जिसमें संपत्ति दस लाख रुपए से अधिक की होती है। किसी कानूनी कार्यवाही के संबंध में देय या खर्च किए गए न्यायालय शुल्क, प्रक्रिया शुल्क और अन्य सभी शुल्कों का भुगतान, कानूनी कार्यवाही में अधिवक्ता प्रदान करना, कानूनी कार्यवाही में आदेशों और अन्य दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतियों को प्राप्त करना और आपूर्ति करना आदि शामिल हैं।