छत्तीसगढ़ प्रदेश के रायगढ़ जिला, धर्मनगरी खरसिया के सुन्दर सा गांव चपले राबर्टसन जहां पर अबिराजीत होकर भागवत भागीरथी में अवगाहन कर रहे है ऐ हमारा परम सौभाग्य है।
व्यासजी श्री इन्द्रेश उपाध्याय जी महाराज ने धर्मग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण द्वारा बैकुंठ लौट जाने के बाद कलियुग की शुरुआत हुई। कलियुग एक मानव के रूप में पृथ्वी पर आया और लीला रचकर पांडवों के वंशज राजा को छल लिया। धर्म से बंधे राजा ने सब जानते हुए भी कलियुग को शरण दी और कुछ ही देर में कलयुग ने अपना असली रंग दिखा दिया…
ऐसे आया धरती पर कलियुग
श्रीकृष्ण द्वारा पृथ्वी छोड़ देने के बाद पांडव भी हिमालय के रास्ते स्वर्ग चले गए। इससे पहले पांडवों ने अपना राज्य अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र परीक्षित को सौंप दिया। एक दिन राजा परीक्षित शिकार पर जा रहे थे कि रास्ते में उन्हें एक व्यक्ति हाथ में डंडा लिए बैल और गाय को पीटते हुए दिखा। उस बैल के एक पैर था और गाय कामधेनु दिख रही थी। राजा ने अपना रथ रुकवाया और क्रोधित होकर उस व्यक्ति से पूछा- ‘तू कौन अधर्मी है, जो निरीह गाय और बैल पर अत्याचार कर रहा है। तेरा कृत्य ही ऐसा है कि तुझे मृत्युदंड मिलना चाहिए।’
डर से कांपने लगा कलियुग
राजा परीक्षित की बात सुनकर कलियुग डर से कांपने लगा। इस पर राजा ने बैल से पूछा- हे देव आपके तीन पैर कहां हैं? आप बैल हैं या कोई देवता हैं? बैल ने कुछ न कहते हुए भी सबकुछ कह दिया और बैल के वचन सुनकर राजा ने कलियुग का वध करने के लिए अपनी तलवार निकाल ली। इस पर कलियुग त्राहि-त्राहि करते हुए राजा पीक्षित के पैरों में गिर गया। राजा अपनी शरण में आए हुए व्यक्ति की हत्या नहीं करते थे। तो उन्होंने कलियुग को जीवन दान दिया।
राजा ने दिया कलियुग को आदेश
राजा परीक्षित बहुत ज्ञानी भी थे। वह चंद शब्दों से बैल के रूप में धर्म और गाय के रूप में धरती मां को पहचान गए थे। कलियुग को जीवनदान देने के बाद राजा परीक्षित ने कहा- कलियुग, तू ही पाप, झूठ,चोरी, कपट और दरिद्रता का करण तू ही है। तू मेरी शरण में आया तो मैंने तूझे जीवनदान दिया। अब मेरे राज्य की सीमाओं से दूर निकल जा और कभी लौटकर मत आना। इस पर कलियुग गिड़गिड़ाते हुए विनती करने लगा- महाराज आपका राज्य तो संपूर्ण पृथ्वी पर है। मैं आपकी शरण में आया हूं तो मुझे रहने का स्थान भी आप ही दीजिए।
राजा ने दिए ये 5 स्थान
कलियुग की विनती स्वीकार करते हुए राजा परीक्षित ने उसे रहने के लिए जुआ, मदिरा, परस्त्रीगमन और हिंसा जैसी चार जगह दे दीं। इस पर कलियुग ने विनती की- राजन! ये चारों जगह मेरे लिए पर्याप्त नहीं है, आप एक और स्थान मुझे दीजिए। इस पर राजा ने उसे सोने अर्थात स्वर्ण में रहने की अनुमति दे दी और शिकार के लिए आगे बढ़ गए। कलियुग को स्थान देते समय राजा यह भूल गए कि उन्होंने सिर पर सोने का ही मुकुट पहना है।
कलियुग ने दिखाया प्रभाव
राजा से स्थान मिलते ही कलियुग तब तो वहां से चला गया। लेकिन थोड़ी देर बाद सूक्ष्म रूप में वापस आया और राजा के मुकुट में बैठ गया। शिकार के रास्ते में राजा को प्यास लगी तो वह शमिक ऋषि के आश्रम में चले गए। उस समय शमिक ऋषि ध्यान में लीन थे और राजा द्वारा पानी मांगे जाने पर भी उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया। इस पर राजा के मुकुट में बैठे कलियुग ने अपना असर दिखाया और राजा के मन में ऋषि को मृत्युदंड देने का विचार आया। किन्तु अच्छे संस्कारों के कारण उन्होंने ऐसा करने से खुद को रोक लिया। लेकिन कलियुग के बुरे प्रभाव के कारण उनकी मति भ्रष्ट हो गई और उन्होंने एक मरा हुआ सांप शमिक ऋषि के गले में डाल दिया। पृथ्वी के किसी मनुष्य पर कलियुग का यह पहला प्रभाव था और उसने सबसे संस्कारी राजा को ही अपना शिकार बनाया।
राजा के प्राणों की रक्षा
जब शमिक ऋषि के पुत्र श्रृंगी स्नान करके लौटे तो उन्होंने देखा कि उनके पिता समाधि में बैठे हैं और उनके गले में मरा हुआ सांप पड़ा है। यह देखकर वह बहुत क्रोधित हुए और पता करने पर उन्हें एक राजा द्वारा यह कृत्य करने के बारे में पता चला। इस पर उन्हों ने शाप दिया कि अगले सात दिनों के अंदर राजा की मृत्यु तक्षक नाग के डसने से होगी।
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राजा ने खुद फलित कराया वचन
जब शमिक ऋषि का ध्यान पूरा हुआ और उन्हें इस बारे में पता चला तब उन्होंने राजा के पास सूचना भिजवा दी। ताकि वह पूरी सतर्कता बरतें। इस पर राजा ने अपने आपको मृत्यु के लिए पूरी तरह तैयार कर लिया और अपने बेटे जन्मेजय का राजतिलक कर उन्हें राज्य सौंप दिया।
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फिर सांतवें दिन तक्षक के काटने से राजा की मृत्यु हो गई। जब जन्मेजय को पिता की मृत्यु का कारण पता चला तो उन्होंने सभी सांपों को मारने के लिए सर्पसत्र यज्ञ किया। इस पर सभी सांप आकर हवन कुंड में गिरने लगे। डरे हुए तक्षक ने इंद्र के सिंहासन में लपेटा ले लिया और फिर आस्तिक ऋषि के समझाने पर जन्मेजय ने अपना यज्ञ रोका। फिर पृथ्वी पर इतना सक्षम कोई राजा नहीं बचा,जो कलियुग को रोक सके।
कथा उपरांत कुर्रुभांठा स्थित शनि मंदिर पहुंचकर श्री इन्द्रेश उपाध्याय जी महाराज ने विधी विधान से पूजा अर्चना किए और शनि मंदिर आए आस-पास के लोगों को अपने बाल गोपाल के साथ श्रीमत् भागवत कथा अमृतमय कथा रसपान करने के लिए आमंत्रित करते हुए
कारवां खरसिया जिंदल परिवार के आग्रह पर चल पड़े…
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